Samjhota pyar ka dusara naam - 1 in Hindi Women Focused by Neerja Pandey books and stories PDF | समझौता प्यार का दूसरा नाम - 1

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समझौता प्यार का दूसरा नाम - 1

मैं कहानी शुरू करने से पहले आप सब से कुछ कहना चाहती हूं । ये कहानी बिल्कुल सच घटना पर आधारित है। पहले तो सुन कर मुझे भी यकीन नही हुआ की क्या सच में ऐसा हो सकता है! मैं हैरान थी ! बात तब की है जब मेरे पिता का ट्रांसफर फैजाबाद हो गया। जब तक रेलवे का आवास नही मिला तब तक हम किराए के मकान में शिफ्ट हो गए।
हम लोग जिस मकान में थे वहां नीचे के हिस्से में मकान मालिक का परिवार भी रहता था। बहुत बड़ा परिवार था उनका। मैं समझ न पाती की मालिक की पत्नी कौन है ?
फिर एक दिन एक परिचित पिताजी से मिलने आए । उन्हे नीचे ही मकान मालिक मिले । वो मकान मालिक से पूर्व परिचित थे। इस कारण अभिवादन किया और हाल – चाल पूछने लगे। साथ में उनकी पत्नी भी थी। वो वहां ना रुक कर ऊपर हमारे घर चली आई।
उसके बाद उन्होंने बात चीत के दौरान जो कहानी उनके परिवार के बारे में बताई वो बिकुल भी यकीन करने योग्य नही थी। पर था तो सच यकीन करना ही था। आज एक लंबा समय बीतने के बाद भी ऐसा कोई परिवार नही मिला। मुझे ख्याल आया मै आप सब के साथ इसे साझा करूं।

रॉकिंग चेयर पर चाय के कप को हाथ में पकड़े वसुधा सोच में गुम थी।
उम्र के सत्तरवे पड़ाव में वो पहुंच चुकी थी । बचपन से ले कर आज तक की सारी बाते चल चित्र की भांति उसके जेहन में घूम रही थी । ये आज उसका इतने पीछे तक सोचना अकारण नहीं था।
आज उसने अपनी बड़ी पोती सिम्मी को किसी से फोन से बात करते सुना था । उसे आता देख सिम्मी ने जल्दी से फोन काट दिया। फोन कटते वक्त जल्दी से सिम्मी "बाय लव यू" कहना वसुधा के कानों में गूंज रहा था ।
ये उम्र ऐसी होती है । जब किशोर मन जल्दी ही बहक जाता है। ऐसा ही कुछ उनकी पोती के साथ भी हो रहा था। इस दौर से वो खुद भी गुजर चुकी थी ।
ये प्यार क्या होता है ! वो खुद प्यार में पड़ने के बाद भी नही समझ पाई। वो सिम्मी को इस राह पर चलने से रोके , पर क्या वो अपनी बात समझा पाएंगी उसे?
वो यही सोचते सोचते अपने उम्र के उस दौर में चली गई जब वो पन्द्रह वर्ष की थी।
सयुक्त ब्राह्मण परिवार की सबसे छोटी बेटी वसुधा सब की लाडली थी।
वो अपने माता पिता की इकलौती संतान थी । पर घर में ताऊ और चाचा के ढेर सारे बच्चे थे । वसुधा के पिता अवधेश शुक्ल छोटी सी परचून की दुकान चलाते थे । वो खुद तो बस आठवी तक ही पढ़ पाए थे। पिता की असमय मृत्यु ने पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर कर दिया । घर परिवार की जिम्मेदारी की खातिर उन्होंने पढ़ाई को तिलांजलि दे दुकान पर बैठना शुरू कर दिया।
अवधेश की दिली इच्छा थी कि वसुधा पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो। जबकि उस जमाने में लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने का चलन नही था। पर वो समाज की परवाह ना कर बस वसुधा को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे।
बहुत ज्यादा होशियार तो ना थी वसुधा पढ़ाई में पर कमजोर भी नही थी। हाई स्कूल सेकंड डिविजन में पास कर सीनियर सेकेंड्री में एडमिशन ले लिया अब वो मेडिकल की पढ़ाई करना चाहती थी इस लिए जी तोड़ मेहनत कर थी । अवधेश भी उसकी पढ़ाई में कोई कंजूसी नहीं करता था। चाहे लाख पैसे की तंगी हो पर वसुधा को इसका आभास नहीं होने देता।
समय पर एग्जाम हुए। वसुधा ट्वेल्थ तो पास कर गई। पर मेडिकल में एडमिशन नहीं हो पाया ।
वसुधा की टीचर ने उसे हौसला दिया और हार न मानने को कहा। विकल्प के रूप में उसे नर्सिंग में बी एस सी करने का सुझाव दे डाला।
वसुधा ने जब अपने पिता को ये बात बताई तो उन्हें भी ये विचार जंच गया।
घर से पचास किलोमीटर दूर नर्सिंग कॉलेज था। वहीं वसुधा ने एडमिशन ले लिया। उसके पापा साथ में छोड़ने आए थे। एडमिशन के बाद उसे हॉस्टल में रहने के लिए जिन जरूरी चीजों की आवश्यकता थी, उसे खरीद कर दी। जब वापस आने लगे ढेर सारी हिदायत बेटी को दी। उनमें से को सबसे जरूरी था ,वो ये की " बेटी मेरी और घर की इज्जत अब तेरे हाथों में है । तू खानदान की पहली लड़की है जो घर छोड़ कर बाहर पढ़ने आई है। तू ऐसा कोई काम मत करना जिससे मेरी मर्यादा को ठेस पहुंचे। "
भावावेश अवधेश ने बाहर भेजने का निर्णय तो ले लिया था , पर अब उसे अपनी असाधारण रूपवती बेटी को इस अनजान शहर में अकेले छोड़ने में कलेजे के टुकड़े टुकड़े हो रहे थे। पर अब कदम पीछे खींचने से वो काफी आगे आ चुके थे। बस एक ही विकल्प था । वसुधा को खूब अच्छे से समझा देना। वसुधा भी भावुक हो कर पिता के गले लग कर रो पड़ी और बोली, "पापा आप बिलकुल भी फिक्र ना करो । मैं कभी भी आपको दुखी नही करूंगी। आप मेरा यकीन करो। मैं बस हॉस्टल से कॉलेज और कॉलेज से हॉस्टल के लिए ही बाहर निकलूंगी। किसी से बिना आवश्यकता के बात भी नहीं करूंगी।"
रोती बेटी को गले लगा चुप कराया । बोले, "मुझे तुझपे पूरा विश्वाश है बेटी । ये तो मैं दुनिया वालों के तानों से बस थोड़ा सा घबरा गया था। तू अपनी सेहत का ध्यान रखना और ठीक से खाना पीना । यहां तेरी मां नही है तुझे जबरदस्ती खिलाने को। पढ़ाई के साथ साथ सेहत का भी ध्यान रखना ।"

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